सर्दी का मौसम अधिकांश लोगों के लिए आराम और सुकून लेकर आता है, लेकिन हाई ब्लड प्रेशर के मरीजों के लिए यह मौसम चुनौतीपूर्ण हो सकता है। जैसे ही तापमान कम होता है, शरीर की रक्त वाहिनियाँ सिकुड़ने लगती हैं और दिल पर दबाव बढ़ जाता है। यही कारण है कि सर्दियों में ब्लड प्रेशर अचानक बढ़ने के मामलों में तेजी देखने को मिलती है, और कई बार यह दिल से जुड़ी गंभीर बीमारियों का कारण भी बन सकती है।
इस ब्लॉग में हम विस्तार से समझेंगे कि सर्दियों में बीपी क्यों बढ़ता है और इस मौसम में ब्लड प्रेशर कैसे कंट्रोल करें।
ठंड में ब्लड प्रेशर क्यों बढ़ता है?
ठंड का मौसम शरीर में कई बदलाव लाता है, और इसी दौरान ब्लड प्रेशर लेवल का असंतुलित होना बहुत आम है।
इसके मुख्य कारण हैं:
- रक्त वाहिनियों का सिकुड़ना: जब तापमान गिरता है, तो शरीर गर्मी बचाने के लिए रक्त वाहिनियों को संकुचित कर देता है। इससे रक्त का प्रवाह सीमित हो जाता है और दिल को रक्त पंप करने में ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है।
- व्यायाम में कमी: ठंड के मौसम में ज्यादातर लोग सुबह की सैर और व्यायाम कम कर देते हैं। कम व्यायाम ब्लड प्रेशर बढ़ाने का प्रमुख कारण बन सकता है।
- गर्म और तैलीय भोजन का सेवन बढ़ना: सर्दियों में आमतौर पर मीठा, तला-भुना और भारी भोजन अधिक खाया जाता है, जिसमें नमक और कैलोरी ज्यादा होती हैं।
- तनाव और हार्मोनल परिवर्तन: ठंडे मौसम में नींद का पैटर्न बदलना, सूरज की रोशनी कम मिलना और कम व्यायाम शरीर के हार्मोन्स पर प्रभाव डालती है, जिससे बीपी बढ़ सकता है।
- पानी कम पीना: सर्दी के मौसम में ज्यादातर लोग पानी कम पीते हैं, जिससे खून गाढ़ा हो जाता है और बीपी बढ़ सकता है।
ठंड में हाई बीपी के लक्षण
सर्दियों में ब्लड प्रेशर बढ़ने के लक्षण कई बार सामान्य तकलीफों जैसे लगते हैं, लेकिन इन्हें हल्के में लेना खतरनाक हो सकता है।
ध्यान रखें यदि निम्न लक्षण बार-बार महसूस हों:
- लगातार सिर दर्द या सुबह उठते ही सिर भारी लगना
- चक्कर आना या आंखों के आगे धुंध दिखना
- दिल की धड़कन तेज होना या अनियमित धड़कन
- सांस फूलना, छोटी दूरी चलने पर भी थकान
- चेहरे पर लालिमा, जबड़ा या गर्दन भारी लगना
- हाथ-पैर हमेशा ठंडे रहना
- अचानक घबराहट / बेचैनी, नींद ना आना
अधिक जानकारी के लिए पढ़ें- ठंड का मौसम और हार्ट अटैक: आपके दिल के लिए यह मौसम खतरनाक क्यों है?
सर्दियों में बीपी नियंत्रित करने के सरल और ज़रूरी उपाय
कुछ आसान आदतें अपनाकर दिल को सुरक्षित रखा जा सकता है और ब्लड प्रेशर को प्रभावी ढंग से नियंत्रित किया जा सकता है।
नीचे दिए गए उपाय बीपी नियंत्रित करने में मदद करते हैं:
- नियमित बीपी मॉनिटरिंग: हफ्ते में 2–3 बार बीपी मॉनिटर करके अपने लेवल्स पर नज़र रखें। इससे समय रहते कदम उठाना आसान होता है।
- नमक सीमित मात्रा में: ज्यादा नमक शरीर में पानी रोकता है और बीपी बढ़ाता है।
- शरीर को गर्म रखें: ठंड शरीर की रक्त वाहिनियों को संकुचित करती है, इसलिए हमेशा सिर, कान, पैर और गर्दन ढकें।
- सुबह-शाम टहलना: कम मेहनत वाला व्यायाम सर्दियों में सबसे सुरक्षित विकल्प है। इससे बीपी, और वजन नियंत्रित रहते हैं।
- वजन नियंत्रण: ज्यादा वजन दिल पर दबाव बढ़ाता है। हल्का व्यायाम और योग सर्दियों में बहुत फायदेमंद है।
- प्राणायाम: गहरी श्वास और प्राणायाम बीपी स्थिर रखने में बेहद असरदार हैं।
- पर्याप्त पानी पिएँ: गुनगुना पानी बीपी स्वस्थ रखने में बेहद सहायक है।
- नींद 7–8 घंटे: नींद बीपी नियंत्रित रखने में अहम भूमिका निभाती है।
तुरंत बीपी कम करने के उपाय
कई बार सर्दियों में अचानक बीपी बढ़ने से सिर भारी लगना, चक्कर आना, घबराहट, या दिल की धड़कन तेज महसूस होती है।
नीचे कुछ बेहद प्रभावी और सुरक्षित तुरंत बीपी कम करने के उपाय दिए जा रहे हैं:
- गहरी सांस लेना: धीमी और गहरी सांसें बीपी को तुरंत नीचे लाने में मदद करती हैं। 5–7 मिनट तक लगातार धीरे-धीरे श्वास अंदर लें और बाहर छोड़ें, इससे नसों का तनाव कम होता है और बीपी तेजी से गिरता है।
- पैरों को गुनगुने पानी में डुबोएं: पैर गर्म होते ही शरीर का रक्त प्रवाह सिर और गर्दन पर से दबाव हटाता है।
- लहसुन चबाना या गुनगुने पानी में लेना: लहसुन रक्त वाहिनियों को फैलाकर तेजी से बीपी कम करता है।
- सिर और गर्दन की हल्की मसाज: नसों का तनाव कम होता है और दिल पर दबाव घटता है, जिससे बीपी सामान्य होने लगता है।
- नमक, चाय, कॉफी और तंबाकू बंद करें: ये सभी पदार्थ बीपी को तेजी से बढ़ाते हैं।
- चुकंदर, केला और मेथी पानी का सेवन: इनमें पाए जाने वाले पोटैशियम और नाइट्रिक ऑक्साइड हाई बीपी को नियंत्रित करने का प्राकृतिक तरीका भी है।
निष्कर्ष
सर्दियों में हाई ब्लड प्रेशर के मरीजों को विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। ऐसे में जरूरी है कि मरीज संतुलित आहार अपनाएँ, शरीर को सक्रिय रखें, नमक सीमित करें और बीपी मॉनिटरिंग को जीवनशैली का हिस्सा बनाएं।
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छोटी-छोटी सावधानियाँ, नियमित मॉनिटरिंग और डॉक्टर से सही समय पर परामर्श मिलकर इस समस्या को पूरी तरह नियंत्रण में रख सकते हैं।