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28 Jul, 2025

लिवर ही नहीं, इन अंगों को भी ले डूबेगा हेपेटाइटिस

हेपेटाइटिस का पाचन तंत्र पर प्रभाव एवं संबंधित जटिलताएँ

प्रतिवर्ष 28 जुलाई को विश्व हेपेटाइटिस दिवस मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य इस वैश्विक स्वास्थ्य समस्या के प्रति जागरूकता बढ़ाना है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, हेपेटाइटिस B और C से लगभग 304 मिलियन लोग संक्रमित हैं, और इस बीमारी के कारण सालाना लगभग 1.3 मिलियन मौतें होती हैं। यह यकृत सिरोसिस (liver cirrhosis) और यकृत कैंसर (liver cancer) से होने वाली मौतों का एक प्रमुख कारण है।

आम धारणा के विपरीत, हेपेटाइटिस का प्रभाव केवल यकृत तक सीमित नहीं है, बल्कि यह संपूर्ण पाचन तंत्र को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है।

पाचन क्रिया पर प्रभाव

फरीदाबाद स्थित सर्वोदय हॉस्पिटल के गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी विभाग के निदेशक, डॉ. कपिल शर्मा के अनुसार, यकृत पाचन तंत्र का एक अभिन्न अंग है जो वसा के पाचन के लिए पित्त (bile) का निर्माण करता है और शरीर से विषाक्त पदार्थों को निकालता है। हेपेटाइटिस के कारण यकृत में सूजन (inflammation) और क्षति होने से पित्त का उत्पादन बाधित होता है, जिससे छोटी आंत में पाचन क्रिया धीमी हो जाती है। इसके प्रारंभिक लक्षणों में भूख न लगना, उल्टी, जी मिचलाना, दस्त और पेट दर्द शामिल हो सकते हैं।

गंभीर पाचन-संबंधी जटिलताएँ

डॉ. शर्मा बताते हैं कि हेपेटाइटिस B और C का समय पर उपचार न होने पर यह पाचन तंत्र के रक्त परिसंचरण को नुकसान पहुँचा सकता है, जिससे निम्नलिखित गंभीर जटिलताएँ उत्पन्न हो सकती हैं:

  • एसाइटिस (Ascites): पेट में असामान्य रूप से तरल पदार्थ का जमा होना।

  • इसोफेजियल वैरिसेस (Esophageal Varices): भोजन-नलिका की नसों में सूजन और उनसे रक्तस्राव का खतरा।

पोषण संबंधी प्रभाव और आंतों की समस्याएं

पुणे स्थित मणिपाल अस्पताल के गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी कंसल्टेंट डॉ. प्रसाद भाटे के अनुसार, हेपेटाइटिस के कारण यकृत की कार्यप्रणाली खराब होने से कई पोषण संबंधी समस्याएं उत्पन्न होती हैं:

  • विटामिन की कमी: यकृत की क्षति से वसा और वसा में घुलनशील विटामिन (fat-soluble vitamins) का पाचन और अवशोषण बाधित हो सकता है, जिससे शरीर में विटामिन A, D, E, और K की कमी का खतरा बढ़ जाता है।

  • प्रोटीन की कमी और कुपोषण: यकृत द्वारा पर्याप्त प्रोटीन और एंजाइम का निर्माण न कर पाने के कारण आंतों में पोषक तत्वों का अवशोषण कम हो जाता है, जो आगे चलकर प्रोटीन की कमी, मांसपेशियों की क्षति और कुपोषण (malnutrition) का कारण बन सकता है।

  • आंतों में सूजन: क्रोनिक हेपेटाइटिस से शरीर में विषाक्त पदार्थों का स्तर बढ़ जाता है, जो आंतों की आंतरिक परत को नुकसान पहुँचा सकता है और गैस, अपच तथा फूड सेंसिटिविटी जैसी समस्याओं को जन्म दे सकता है।

जीवन-घातक स्थितियाँ

लंबे समय तक हेपेटाइटिस रहने पर यह सिरोसिस में परिवर्तित हो सकता है, जिससे दो प्रमुख जीवन-घातक स्थितियाँ उत्पन्न हो सकती हैं:

  1. पोर्टल हाइपरटेंशन (Portal Hypertension): यकृत में रक्त प्रवाह बाधित होने से पोर्टल नसों में रक्तचाप अत्यधिक बढ़ जाता है। इससे भोजन-नलिका और पेट की नसों में सूजन और रक्तस्राव हो सकता है, जो घातक सिद्ध हो सकता है।

  2. हेपेटिक एन्सेफैलोपैथी (Hepatic Encephalopathy): जब यकृत रक्त से विषाक्त पदार्थों को प्रभावी ढंग से निकालने में विफल हो जाता है, तो ये पदार्थ मस्तिष्क तक पहुँच जाते हैं, जिससे मतिभ्रम, स्मृति-लोप और बेहोशी जैसी तंत्रिका-संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।

अतः, समय पर निदान और उपचार न केवल यकृत को बचाता है, बल्कि पाचन तंत्र और शरीर के अन्य अंगों को भी गंभीर एवं घातक जटिलताओं से सुरक्षित रखता है।

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